रियाया से अवाम तक का सफर:माधव राव सिंधिया
भारतीये लोकतंत्र में जिन नेताओं ने मुझे प्रभावित किया उनमे माधव राव सिंधिया मेरे बेहद आजिज़ हैं.हालाकिं में किसी पॉलिटिकल सोच से मुत्तासिर नही हूँ.फ़िर भी में मानता हूँ देश को आज माधव जैसे दूरदर्शी नेताओं की जरुरत है.वे देश के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे.वे जन्म जात राजा थे.रियया से लेकर आवाम तक का दर्द बे महसूस करते थे.सिधिया घराने की वे बेहद प्रतिभाशाली कुंवर थे.यही वजह है की ३० सितबर २००१ में उनकी मौत हुयी तो पुरा देश रो पड़ा.माधव राव सिंधिया की मौत एक विमान हादसे में हुयी थी.उस वक्त मेरी उम्र महज १८ साल की थी.में तब दैनिक जागरण में एक ट्रेनी रिपोर्टर था.उस दिन बेहद तेज़ बारिस हो रही थी.में घर पर था.2 बजे का समय रहा होगा.मेरे बॉस अनिल मिश्रा ने मुझे फ़ोन पर जानकारी दी की बेवर के पास एक हवाई जहाज़ क्रेश हुआ है.उन्होंने मुझे वहाँ जाने को कहा.मेने हा कर दी.और जाने की तेयारी शुरू कर दी.उस वक्त में बी ए प्रथम वर्ष का छात्र था.विमान के बारे में मुझे कोई जानकारी नही थी.में कैसे रिपोर्टिंग कर पाउँगा.विमान की तकनीक सम्बन्धी भी मुझे कोई खास जानकारी नही थी.ये सब सोचते हुए मैं कपड़े पहनते चला गया.घर से बहर निकला तो तेज़ बारिस ने एकबारी जाने से रोकने की नाकाम कोसिस की .में निकल चुका था.बस स्टेंड पर मेरे पत्रकार मित्र अशोक बाजपेई इंतजार कर रहे थे,हम दोनों ने आखों में ही तुंरत चलने का इशारा किया और एक डग्गेमार जीप में सवार हो गए.पानी तेज़ होने से गावं के संपर्क मार्ग टूट चुके थे.पता चला की जिस गावं में ये दुर्घटना हुयी है उस गावं का नाम भैंसरोली है.इस गावं तक पहुचने में कई बाधाओं को पर करना पड़ा.तेज़ बारिस में कोई घर से नही निकल रहा था.पौने 3 बजे हम लोग उस गावं में दाखिल हुये. घरों के दरवाजों पर आजीब सा सन्नाटा लटक रहा था.सन्नाटे को चीरने के लिए बस बारिस का शोर था.जीप को २ किलो मीटर दूर छुड कर हम पैदल ही घटना स्थल की और चल पड़े.एक बाग़ से होकर हम उस खेत में पहुंचे जहाँ ये विमान दुर्घटनाग्रस्त पड़ा था.देख कर मेरे होश उड़ गए.तेज़ बारिश का पानी भी विमान की आग को बुझा नही पाया था.तेज़ बारिस भी विमान की लपटों को शांत नही कर पायीं थी. अभी तक मुझे नही पता था की इस में कोन सवार है.आलू के खेत में ओंधे पड़े इस विमान को देखकर मुझे ये एहसास हो गया था की इसमें कोई नही बचा होगा.मेने गावं वालों को बुला कर विनती कर के किसी तेरह विमान का बायीं तरफ का दरवाज़ा तोडा.अन्दर का नजारा याद करके आज भी मेरी मेरी रूह काँप जाती है.विमान में सवार लोगों की सेफ्टी बेल्ट तक का खोलने का मोका नही मिला था.सभी लोग सीटों से बुरी तरह चिपके हुए थे.पानी और आग ने लोगों के चेहरों को पुरी तरह से बिगाड़ दिया था.जैसे इन लोगों के मास्क विमान मैं डाल दिए हों. मुझे याद है की पहली लाश एक महिला की थी.ये इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्टर अंजू शर्मा थीं. मेने हाथों का सहारा देकर निकालने की कोसिस की लेकिन अंजू का जिस्म सीट से बुरी तरह से चिपका था.मांस को खिचता देख मदद कर रहे ग्रामीण को उलटी आगयी.लाश को छुड़ते हुए वो बोला ''लला जे हमसे नाए हुये.......उसके इतना कहने पर मैंने गर्दन उठा कर अपने आगे पीछे देखा दो लोगों की तरफ इशारा किया.वे लोग मुह पे कपड़ा बाँध कर मदद को आगे आए.तब तक पुलिस एक अफसर दोड़ कर मेरे पास आए.उनका बारलेस सेट माधव राव सिंधिया के बारे में संदेश दे रहा था.इतना सुन कर में मामला समझ गया की ये हादसा मामूली नही है.पुलिस अफसर लाशों में अ़ब माधव राव सिंधिया को खोजने लगे.तभी मुझे पायलट की सीट के ठीक पीछे एक लाश सीट मे धंसी नजर आई.उसे निकल कर देखा.लाश के गले में माँ दुर्गा का सोने का एक लोकेट पड़ा हुआ था.मेने तुरन्त पुलिस अफसर को बताया की ये ही माधव राव सिंधिया की लाश है.लाश की हालत देख कर मेरी आँख भर आयीं.एक राजा की इस तरह मौत.....में समझ नही पा रहा था.इस दुर्घटना में सिंधिया सहित ८ अन्य लोग भी मरे गए थे.इस दुर्घटना की एक खासियत ये थी की विमान शेषना एयर किंग ९० बिना ब्लेक बॉक्स का था.विमान का मालवा देख कर कहा जा सकता था की ये एक जर्जर विमान है.ग्रामीणों के मुताबिक विमान में आग आसमान में ही लग चुकी थी.कैसे.... पायलट ने इमरजेंसी लेंडिंग की कोसिस की लेकिन विमान में कोई धमाका हुआ जिससे किसी को ब
चने का मौका नही मिला.बरहाल ये सब जाँच के विषय होने चाहिए थे.दुर्घटना के बाद जाँच के लिए एक टीम गठित की गई लेकिन इस टीम ने जाँच में क्या पाया ये किसी को मालूम नही हो सका.ये दुर्घटना कैसी हुयी ये अभी भी राज़ है.बताते हैं की इस विमान में ब्लेक बॉक्स नही था.अगर ऐसा है तो आख़िर इतने जिम्मेदार नेता को उस जहाज़ में जाने की इजाज़त किसने दी ?ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जबाव जानना बेहद जरुरी है.
- हृदेश सिंह
श्रीमंत सिंधिया को हमारा भी शत शत नमन |
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