एक जमाना था जब नगर की आधी आबादी करहल रोड से होकर ही अपने एवं सरकारी कार्यो के लिए आती जाती थी। मैनपुरी से करहल तक आसपास स्थिति सैकड़ों ग्रामों के लोग अपनी दैनिक उपयोग की वस्तुयें खरीदने को इसी मार्ग से होकर बाजार करने आते थे। यह तब की बात है जब नगर क्षेत्र में तीन खाद्यान्न मण्डी हुआ करती थी। खाद्यान्न तिलन एवं दलहन का कारोबार राजा मण्डी, मण्डी मोतीगंज तथा मण्डी झम्मनलाल में बैठकर आढ़ती अपना कारोबार करते थे। जहां क्षेत्र का सैकड़ों किसान अपनी फसल बेचने के लिए आता था तब इस मार्ग का शहर के लिए अपना अलग महत्व था। नगर क्षेत्र का विकास हुआ, मण्डी शहर से बाहर स्थापित हो गयी। किसान का इधर से होकर गुजरना बंद हो गया मगर दैनिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए आना जाना बंद नहीं हुआ। करहल रोड बाईपास चौराह से शहर के बड़े चौराहे तक का लगभग 2.5 किमी. का टुकड़ा शासन की उपेक्षा के चलते अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है।
एक समय था जब करहल रोड नगर के मुख्य मार्गो में गिना जाता था। व्यापारी हजारों रुपया देकर भी किरायेदारी पर दुकान लेने को आतुर रहता था, जमाना बदला तो इस मार्ग की बदहाली के दिन शुरू हो गए। वर्षो पूर्व निर्मित सड़क योजनाओं में उपेक्षा के चलते धीरे धीरे गडढों में तब्दील होती गयी। अब आलम यह है कि जहां तक नजर दौड़ायें सड़क के स्थान पर गढ्डे ही गढ्डे ही दिखाई देते है। वर्षो से धीरे धीरे टूटती सड़क के दोनों तरफ की नालियों और सड़क में कोई अन्तर शेष नहीं रहा। नाली का गंदा पानी सड़क पर बहता है और सड़क की गंदगी नालियों में गडढों में भरा नालियों का बदबूदार गंदा पानी तब और भी परेशानी उत्पन्न कर देता है जब इस सड़क से होकर दुपहिया या चारपहिया वाहन गुजरता है तो गहरे गहरे गढ्डों में भरा गंदा पानी छिटककर या तो राहगीरों के कपड़े खराब कर देता है या सड़क के दोनों तरफ खाद्य सामग्री का व्यापार कर रहे व्यापारियों की दुकान में घुसकर सामान को प्रदूषित कर देता है और सब देखते रह जाते है। अपनी इस दशा पर दुकानदार और राहगीर, क्षेत्रीय प्रतिनिधि एवं जिला प्रशासन को कोसने के अलावा कुछ नहीं कर सकते है।
मार्ग की खस्ता हालत के चलते क्षेत्रीय लोगों ने इस मार्ग से होकर निकलने के बजाय अगल-बगल की गलियों से होकर निकलना शुरू कर दिया है, जिसका असर अब इस मार्ग के दोनों तरफ व्यापार कर रहे व्यापारियों पर साफ दिखाने लगान है। जहां कभी लोग दुकान पाकर अपने धनवान होने का सपना देखते थे। आज यहां व्यापार कर रहे अपने भाग्य को कोस रहे है। इसकी दयनीय दशा को सिद्ध करने के लिए इतना ही प्रमाण काफी है कि जब भी कोई बाहरी यात्री रोडवेज स्टेण्ड या रेलवे स्टेशन पर उतरकर रिक्शे वालों से इस रोड के क्षेत्रीय मुहल्लों में चलने को कहता है तो रिक्शे वाले का एक ही जवाब होता है कि न बाबा न किसी कीमत पर नहीं जाना। क्योंकि रिक्शा पलटा तो पिटने का डर तो है ही साथ ही रिक्शा टूटने से अपनी रोजी रोटी से भी दो चार दिन के लिए हाथ होना होगा। यात्री के ज्यादा जोर देने पर दुगने-तिगने भाड़े पर चलने को इसलिए तैयार होते है कि कई गलियों से घूमते हुए जाना पड़ता है।
ऐसा नहीं इस मार्ग से जुड़े क्षेत्रीय नागरिकों का सामाजिक संगठनों ने करहल रोड की बदहाली के खिलाफ आवाज नहीं उठाई। समय-समय पर धरना प्रदर्शन जन आंदोलन कर अधिकारियों का घिराव कर मांग भी की गयी और जनप्रतिनिधियों द्वारा इसके निर्माण के प्रस्ताव भी शासन तक भेजे गए मगर नतीजा सिफर ही रहा। अधिकारियों के आश्वासन तथा जनप्रतिनिधियों के प्रस्ताव कागजी खानापूर्ति बनकर रह गए। नगर की अन्य सड़कें सीसी हो गयी मगर करहल रोड उपेक्षा के चलते आज भी अपनी बदहाली की दास्तां आते जाने लोगों को दिखा अपनी किस्मत को कोस रहा है।
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रोया करे जनता, कितना भी ख़राब हो रास्ता, अपन क्यों करे चिंता,
चिंता करने तो थोड़े ही बने हम अधिकारी या नेता ??
भाई, अपने पास तो गाडी है, चलती भी बहुत प्यारी है ,
हमे तो दुखी नहीं करता यह रास्ता, फ़िर क्यों करे हम चिंता ??
हम है अधिकारी बड़े या हम है नेता, हमे है देश की चिंता, रास्ते की चिंता करे जनता !!
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