राह दिखाओ मैनपुरी के युवाओं को....

मैनपुरी में युवाओं की संख्या ढाई लाख के लगभग है...मैनपुरी के युवाओं को शिकायत है की मैनपुरी में उनके के लिए कुछ नहीं है... मैनपुरी की अधिकतर युवा आगरा.दिल्ली और लखनऊ जैसे बड़े शहरों में उच्च शिक्षा लेते है..बाद में ये युवा बड़े शहरों में ही शिफ्ट हो जाते है....कभी किसी पर्व ये युवा अपने घरों की और कुछ दिनों के लिए आते है....प्रवासी की तरह.... ये सिलसिला बीते दो दशकों से देख रहा हूँ.इन युवाओं में अधिकतर मेनेजमेंट और इंजीनियरिंग के फील्ड से होते हैं.इन युवाओं को मैनपुरी में अनगिनत खामियां नजर आती है....और गिनाते वक़्त समय फक्र महसूस करते है...मेरी अक्सर मैनपुरी से बाहर रह रहे युवाओं से बातचीत होती रहती है....सब के पास समस्याएँ है....लेकिन हल किसी के पास नहीं है....में उनसे हमेशा इन समस्याओं को हल करने के बारे में सवाल करता हूँ....बात नेता और प्रशासन पर आकर खत्म हो जाती है...एक दौर था....90 का दशक. मैनपुरी में युवाओं की धूम थी.युवाओं की टोलियाँ हर दिन कुछ कुछ करती थी.
कई युवा संगठन थे,अच्छा काम करते थे.प्रतियोगिता....सांस्कृतिक प्रोग्राम.....गोष्ठियां.....सब कुछ करते थे जो युवाओं को करने चाहिए.बुजुर्गों की इज्ज़त.......महिलायों का सम्मान.....अधिकारों के हनन पर गुस्सा..प्रदर्शन...ये सब दौर बचपन में देखा था....यादें ही अब ज़ेहन में...फ़िरोज़ अहमद...पवन कुमार....पंकज.....गजेन्द्र.....राजपाल सिंह.....जितेन्द्र गुप्ता.....नीरज बैजल....अमित गुप्ता....राहुल चतुर्वेदी.....ऐसे दर्जनों युवा थे...जिनके नाम मुझे याद है.शायद इनके काम के कारण....गुज़रे एक दशक में मैनपुरी का कोई ऐसा युवा नजर नहीं आया जो मेरे ज़ेहन में हो.... जिसका नाम मुझे याद हो...वक़्त गुज़रे ज्यादा नही हुआ है...लेकिन सोचता हूँ तो लगता है वक़्त बहुत हो गया है....मैनपुरी में कई युवा सगठन थे....स्वामी विवेकानद युवा समिति....मैनपुरी क्लब.....एकमन क्लब....लाइंस क्लब...खेल में इलेवन स्टार...राजनीति में स्टुडेंट क्लब.... दर्जनों संगठन थे.
जो
युवाओं के लिए काम करते थे....उनकी आवाज़ उठाते थे....यही नहीं बुजुर्गों को नई तकनीक की जानकारी भी देते थे...मैनपुरी को इन युवाओं पर हमेशा नाज़ रहेगा....आज ये सभी युवा सफल है...इन में से कई युवा अधिकारी हैं और कुछ अपने फील्ड के मास्टर है...ये युवा तब सक्रिय थे....जब संचार के साधन मैनपुरी में आज की तरह विकसित नहीं थे...नेट नहीं था...शानदार स्कूल नहीं थे....जानकारी के लिए बस दूरदर्शन और रेडियो था....आज सब कुछ है तकनीक है संसाधन है....तब युवाओं का ये हाल है.....बदलाव के सबसे बड़े समर्थक युवा होते हैं...लेकिन ये बात मैनपुरी में नजर में नहीं आती...आज युवाओं का नैतिक पतन हो रहा है....बीते तीन सालों में मैनपुरी का युवा अपराध की और मुड़ा....मैनपुरी में होने वाले अपराधों में युवा अपराधिओं का प्रतिशत 60 से अधिक है...इन युवाओं में सबसे ज्यादा 20 से 30 की उम्र के हैं....मारपीट...लुट...हत्या...वाहन चोरी...चैन स्नेचिंग....छेड़खानी जैसे अपराधों में सेकड़ों युवा जिला बदर.गेंगस्टर की कार्रवाई को झेल रहा है,कई शातिर अपराधी बन चुके है....अपराध की दुनिया में उनका नाम है.
मैनपुरी
के युवाओं को सही राह दिखाना बेहद जरुरी है...इसमें प्रबुद्धजनों.....प्रशासनिक अधिकारिओं और शिक्षण संस्थाओं को आगे आना होगा...मैनपुरी के विकास में जनता को अपने हिस्से का काम करना होगा...एक दुसरे का मुहं ताकने की आदत को त्यागना होगा.....अपने बच्चे के साथ दुसरे के बच्चे को भी आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करना होगा...साथ ही युवाओं को भी जन्मभूमि के लिए कुछ करना होगा जिससे खुद में वे कह सकें....हाँ मैं मैनपुरी की मिटटी में पैदा हुआ हूँ

***हृदेश सिंह****
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3 टिप्पणियाँ:

  1. एक बेहद उम्दा सोच का परिचय देती पोस्ट !

    "नाज़ है मैनपुरी को कि अज़ीज़ हो उसके तुम ......नाज़ है मुझे कि अज़ीज़ हो मेरे तुम !"

    जब तक मैनपुरी में तुम्हारे जिसे युवा पत्रकार है मैनपुरी का युवा जानता है उसे राह दिखाने वाला कोई है जो उसका अपना है ! बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं !

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  2. शिवम जी के साथ मैनपुरी के युवा जिंदाबाद-जिंदाबाद
    श्रावणी पर्व की शुभकामनाएं एवं हार्दिक बधाईलांस नायक वेदराम!---(कहानी)

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  3. हृदेश जी आपने जो लिखा है उसमे कुछ भी गलत नहीं है पर मैं अपनी बात यहाँ रखूंगा|

    पिछले वर्ष यानी २००९ में मैंने मैनपुरी में एक सेमिनार का आयोजन किया था, पूरे एक सप्ताह वहाँ रहा, सभी स्कूल, कॉलेज में गया, पम्पलेट बांटे, जा जाकर लोगो को जानकारी दी साथ में लगभग ५ लोग पूरे १५ दिन तक प्रचार का कार्य करते रहे, लगभग २०,०००० रु. का खर्चा किया. बदले में क्या चाहिए था? यही न कि लोग आये जाने कि कैसे तरक्की कर सकते हैं, आगे पढाई में क्या करना चाहिए इत्यादि|

    पर नतीजा "ढाक के तीन पात", मात्र १५-२० लोग पहुंचे, वो भी एस आश में कि शायद "एमवे" या "स्वदेशी" जैसी कोई स्कीम होगी जिसको शुरू में ही ज्वाइन करके फायदा ले लेते हैं, बाद में ज्वाइन करने पर नुकसान ही होता है|

    मेरा निष्कर्ष कहता है कि मैनपुरी के युवाओं को इस तरह के आयोजनों से कोई मतलब नहीं है, यदि इतने ही रु. खर्च कर के ओर्केस्ट्रा का प्रोग्राम करवाता और साथ में १००रु. टिकट भी रख देता तो इतनी भीड़ हो जाती कि पैर रखने की जगह भी ना बचती|

    पर मैं सुधरने वाला नहीं हूँ फरवरी २०११ में फिर से एक सेमिनार कराने वाला हूँ- अगर इस बार भी लगा कि विद्यार्थियों को कोई रुची नहीं है तो कभी नहीं करूँगा|

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