चिडियां ते मैं बाज़ लडाओं......


उत्तर
प्रदेश का वीर...कर्मवीर


रिष्ठ आई पी एस अफसर कर्मवीर सिंह को यूपी पुलिस का मुखिया बनाया जाना एक सराहनीय कदम है| कर्मवीर का मैनपुरी से नाता पुराना है, कर्मवीर मैनपुरी के पहले एसपी रह चुके हैं| यह वो समय था जब मैनपुरी में डाकुओं का साम्राज्य था| डाकुओं के दहशत से सरकारें तक परेशान थी| उस समय मैनपुरी में डाकू छबिराम की हुकूमत थी| जिले मैं इस डाकू की छवि 'रोबिनहुड' की थी| लोग इस डाकू को ''नेता जी'' कहकर बुलाते थे| इस डाकू का जलवा देखने लायक था| ये बात ८० के दशक थी उस समय पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह प्रदेश के सीएम थे| दिउली कांड में २० दलितों की हत्या से इंदिरा गाँधी की सरकार हिल चुकी थीं| उपर से डाकू छबिराम का आतंक... इस सब से कांग्रेस सरकार को सदन में जबाव देते नही बन रहा था| डाकू छबिराम का इलाके में रसूक था। डाकू छबिराम चुनौती के साथ डाके डाल रहा था| इकरी, कुरावली, नवातेदा, आलीपुर खेडा जैसे इलाको में छबिराम के गिरोह की दहशत थी| जनपद फरुखाबाद, शहजानपुर तक में भी उसका आतंक फ़ैल चुका था| प्रदेश से बाहर एमपी में भी उसका कहर बरसता था| उस समय युवक कांग्रेस के प्रसीडेंट खुशी राम यादव ने छबिराम का आत्मसमर्पण कराने के भरसक कोशिश की| बताते है कि जातीय कारण और स्थानीय नेताओं की राजनीति के चलते छबिराम का आत्मसमर्पण नही हो सका| जब इंदिरा गाँधी ने वीपी सिंह से दो टूक शब्दों में ये कहा की ''राजा साहब या तो सीएम की कुर्सी छोड़ो या छबिराम मारो'' तब सीएम वीपी सिंह ने उस समय के युवा सरदार आईपीएस अफसर कर्मवीर को छबिराम को पकड़ने की जिम्मेदारी सौपी गयी |

नए अफसर के लिए ये टास्क किसी चुनौती से कम नही था| लेकिन ये चुनौती इस सरदार ने सम्भाली, और अंत में उसे अंजाम तक ले गए| बाद में कर्मवीर प्रदेश में डाकू उन्मूलन के लिए पहचाने जाने लगे| डाकू उनके नाम से थर्राने लगे थे| कर्मवीर मुठभेड़ में ख़ुद डाकुओं से मोर्चा लेते थे |

सीनियर पत्रकार खुशी राम बताते हैं, ''कर्मवीर का जोश देखने लायक होता था....वे बेहद सख्त अफसर थे| गुरु गोविन्द सिंह की तरह वे भी चिडिया से बाज़ लड़ाने का दम रखते थे| और उन्होंने ऐसा किया भी.''

छबिराम के गिरोह में कुल ७ या १० लोग थे| घोडों पर उनकी सवारी थी| जब उनका गिरोह सड़कों पर बेखोफ निकलता था तो पुलिस के जावन उसे सलाम करते हुए रास्ता देते थे| महिलाओं की छबिराम इज्ज़त करता था| उनके मायके से लाये गहने छबिराम ने कभी नही लुटे| लड़किओं की शादी में छबिराम खूब खर्च करता था...इधर 'नेता जी' लोकप्रियता बड़ती ही जा रही थी| डाका डालने का ग्राफ भी बड रहा था| ऐसे में अब कर्मवीर के लिए छबिराम का पकड़ा जाना जरुरी हो गया था| इधर कुछ नेता अपने स्वार्थ के चलते छबिराम का आत्मसमर्पण नही होने देना चाह रहे थे|

इन सब दिक्कतों के बाद भी कर्मवीर ने हिम्मत नही हारी| वीपी सिंह की ओर से दी गयी डेड लाइन खत्म हो चुकी थी| बावजूद इसके कर्मवीर ने एक दिन की मोहलत सरकार से और मांगी.मोहलत मिलने के दिन ही कर्मवीर ने छबिराम का सफाया करने की ठान ली| सटीक मुखबिरी और रणनीति से पुलिस ने ओंछा के पास जंगलों में मुठभेड़ में मार गिराया| बाद में डाकू छाबिराम की लाश को क्रिश्चयन मैदान में रखा गया| किसी डाकू कि लाश को पहली बार जनता के लिए सार्वजनिक रूप से दिखाया गया था| पूरा मैदान कर्मवीर सिंह के नारों से गूंज रहा था| लोग उनको हाथों में उठा रहे थे| ये किसी भी अफसर के लिए एक सुनेहरा पल कह सकते हैं| ये पल तोफीक इश्वर ने उन्हें दी थी| ये इज्ज़त शायद ही किसी पुलिस अफसर को यूपी में मिली हो|

इस बहादुर पुलिस अफसर के आने से यूपी पुलिस का चेहरा बदलेगा ऐसी उम्मीद की जा सकती है| क्यों की कर्मबीर ने हमेशा चिडिया से बाज़ लड़ाए हैं.....शुभकामनाएं|

  • हृदेशसिंह


Share on Google Plus

About VOICE OF MAINPURI

1 टिप्पणियाँ:

  1. jaan ke khushi huee, i've heared about Chhaviram from my father,

    ReplyDelete