अव्यवस्था को नजरअंदाज करने का खामियाजा जन साधारण को ही भुगतना पड़ता है। सड़कों की मरम्मत, बिजली के लटकते तार, पानी के अवैध कनेक्शन या पेयजल आपूर्ति की पाइपों में लीकेज की जब उपेक्षा होती है तो बड़ी घटनाएं होने पर ही सरकारी विभागों में हड़कंप मचता है।
अखबार में खबर छपी , "डायरिया फैलने से चार बच्चों सहित पांच लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों उल्टी-दस्त से पीड़ित सिविल अस्पताल में भर्ती हैं। आरोप है कि पेयजल में गंदे पानी की सप्लाई हो रही है।", तो अधिकारियों ने आनन-फानन प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया और स्वास्थ्य विभाग की टीम ने पानी के सैंपल लिए। क्या यही निरीक्षण पहले नहीं होना चाहिए था कि कहां-कहां दूषित पानी की आपूर्ति हो रही है ??
लोग शिकायत करते हैं तो उस पर गंभीरता नहीं दिखाई जाती। बारिश के मौसम जल जनित बीमारिया फैलती ही हैं। सरकार ने जब पेयजल कनेक्शन नि:शुल्क दिए हुए है, फिर लोगों को अपने आप कनेक्शन जोड़ने की क्या जरूरत थी ?? स्वास्थ्य और जन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को ऐसे कनेक्शन मिलते हैं तो उन्हें तुरंत काट दें। देश के विभिन्न जिलों में भी यही समस्या है। एक बार बीमारी फैल जाए तो स्वास्थ्य विभाग दावा करता है कि आगे से तमाम एहतियात बरते जाएंगे। मौसम बदलते ही सारे दावे फीके पड़ जाते हैं।
क्यों ना मानसून शुरू होते ही नालियों और खाली स्थानों पर भरे पानी की निकासी की व्यवस्था की जाए, फागिंग हो और कूड़े के ढेर न लगने दिए जाएं ??
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