संयोगिता के लिए चली पृथ्वीराज की तलवार का साक्षी है मैनपुरी

उनकी तलवार जब चलती थी तो रण में बिजलियां सी कौंध जाती थीं। रण के कोने-कोने में एक ही नाम गूंजता था, कि आ गये पृथ्वीराज। पृथ्वीराज चौहान मुगलों के लिये दहशत का पर्याय थे। मोहम्मद गौरी को उन्होंने लगातार 16 युद्धों में धूल चटाई। युद्ध के मैदान में पृथ्वीराज जितने सख्त थे, उनका दिल उतना ही कोमल था। कन्नौज के राजा जयचन्द की बेटी संयोगिता के लिये धड़कता था उनका दिल। संयोगिता और पृथ्वीराज की प्रेम कहानी आज भी इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज है। इन पन्नों में मैनपुरी का भी जिक्र है।
पृथ्वीराज का मैनपुरी से जुड़ाव कम रोचक नहीं है। इस जिले के पड़ोसी जनपद कन्नौज के राजा जयचन्द ने अपनी बेटी संयोगिता के विवाह के लिये स्वयंवर का आयोजन किया। इस स्वयंवर में सारे देश के राजा बुलाये गये केवल पृथ्वीराज चौहान को स्वयंवर का निमंत्रण नहीं दिया गया, जबकि पृथ्वीराज और संयोगिता के बीच चल रहा प्रेम का उन्माद उन दिनों चरम पर था।
स्वयंवर में निमंत्रण न मिलने से नाराज पृथ्वीराज ने अपने प्रेम को पाने के लिये कन्नौज पर चढ़ाई कर दी। पृथ्वीराज ने स्वयंवर स्थल से संयोगिता को अपने साथ लिया और दिल्ली के लिये रवाना हो गये। जयचन्द को ये सब गवारा नहीं हुआ और पृथ्वीराज को जयचन्द्र की सेना ने घेरना शुरू कर दिया। जिले के किशनी, समान और करहल के बीच पृथ्वीराज की सेना को जयचन्द के सैनिकों ने घेर लिया। तब पृथ्वीराज के वीरराज सेनापति मोटामल ने कस्बा करहल में पृथ्वीराज और संयोगिता को आगे रवाना कर जयचन्द की सेना से मोर्चा ले लिया। भीषण युद्ध हुआ। इसमें मोटामल शहीद हो गये, लेकिन संयोगिता और पृथ्वीराज सकुशल दिल्ली पहुंच गए। बाद में पृथ्वीराज को मोटामल के शहीद होने की जानकारी मिली तो उन्हें बहुत दुख हुआ और उन्होंने करहल में मोटामल की मूर्ति स्थापित कराई। विश्राम गृह एवं कुएं का निर्माण कराया। जो आज भी इस इतिहास की गवाही देता है। मोटामल के बारे में इतिहास है कि उनकी मूर्ति पास में बने कुएं में गिर गयी। लोगों ने उसे बाहर निकालना चाहा लेकिन वह मूर्ति बाहर नहीं निकली और आज भी कुएं में ही पड़ी है। इस स्थान पर कालांतर में पीपल के पेड़ के पास देवी-देवताओं की मूर्तियों को शिखर से ढकने के लिये लोगों ने उसका निर्माण कराया, लेकिन शिखर निर्मित होने के बाद भी ढह गया। यहां के निवासी अशोक मिश्र बताते हैं कि होली के तीज से यहां मोटामल महाराज का मेला लगता है।
संयोगिता से जुड़ी एक और कहानी इतिहास में है। कस्बा करहल में हजरत जफर शाह उन दिनों देश के बडे़ ओझाओं के रूप में जाने जाते थे। दिल्ली जाते ही संयोगिता बीमार पड़ गयीं। काफी इलाज के बाद भी उनकी सेहत नासाज बनी रही तो पृथ्वीराज ने जफर शाह को करहल से दिल्ली बुलवाया। दिल्ली जाकर जफर शाह ने संयोगिता को अपने इलाज से ठीक कर दिया। बताया यह भी जाता है कि जिले के पतारा क्षेत्र में बसे चौहानों के 24 गांवों जिन्हें अब चौघरा क्षेत्र कहा जाता है। इनमें से पतारा में घाटमदेव महाराज के वंशज रहते थे। इन वंशजों के यहां पृथ्वीराज की दो मौसी भी ब्याही थीं।
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2 टिप्पणियाँ:

  1. truly said!!!!!..Prathviraj chauhan was a great warrior and a passionate lover. For all the chauhans living in the city he is a great inspiration. All his life he followed a simple code. he loved his queen and died for his country. His bravery will always inspire us. salute to such a hero!!!!!!

    R. P. S. Chauhan

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  2. prithviraj ke vanshaj mainpuri jila me faile hue hain. Nai generation ko apane purvajo ke bare me jankari milani chahiye.Lekh achchha hai.Chauhano ke bare me aur vistar kare.
    Patara ke 24 gavon ke chauhano ko Chaughara ka bataya gaya hai,Shayad alag alag hain.Vistar kare.Lekh ke liye Dhanyabad.
    R.K.S.Chauhan

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