राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी कहे जाने वाले आचार्य विनोबा भावे मूलत: एक सामाजिक विचारक थे जिन्होंने भूदान आंदोलन के जरिए समाज में भूस्वामियों और भूमिहीनों के बीच की गहरी खाई को पाटने का एक अनूठा प्रयास किया।
विनोबा भावे अपने युवाकाल में ही महात्मा गांधी के समीप आ गए थे। विनोबा को गांधी की सादगी ने जहां मोह लिया, वहीं राष्ट्रपिता ने विनोबा के भीतर एक विचारक और आध्यात्मिक व्यक्तित्व के लक्षण देखे। इसके बाद विनोबा ने आजादी के आंदोलन के साथ-साथ महात्मा गांधी के सामाजिक कार्यो में सक्रियता से भाग लिया। भूदान आंदोलन की चर्चा करते हुए गांधीवादी आर्यभूषण भारद्वाज ने बताया कि विनोबा इसे आंदोलन न कहकर यज्ञ कहना पसंद करते थे। उन्होंने कहा कि आंदोलन में भागीदारी करनी पड़ती है जबकि यज्ञ में आहूति देनी पड़ती है। लिहाजा भूदान में अधिक भूमि रखने वाले भूस्वामियों को अपनी भूमि की आहूति देनी पड़ती थी।
विनोबा के साथ जुड़े रहे भारद्वाज ने बताया कि भावे एक स्वतंत्र विचारक थे। उन्होंने कई विषयों पर गांधी से हटकर स्वतंत्र चिंतन किया और उनका चिंतन आकर्षक होने के साथ-साथ व्यावहारिक भी था। विनोबा का जन्म 11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के एक गांव में हुआ। शुरुआती शिक्षा के बाद वह संस्कृत के अध्ययन के लिए ज्ञान नगरी काशी गए।
काशी में उन्होंने समाचारपत्रों में महात्मा गांधी का बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दिया गया भाषण पढ़ा। इस भाषण ने विनोबा के जीवन की दिशा बदल दी क्योंकि इससे पहले वह महात्मा बनने के लिए हिमालय या क्रांतिकारी बनने के लिए बंगाल जाने वाले थे। उन्होंने पत्र लिखकर महात्मा गांधी से मिलने का समय मांगा। महात्मा गांधी से पहली ही मुलाकात के बाद दोनों का गहरा संबंध जुड़ गया। बापू ने उन्हें अपने वर्धा आश्रम का जिम्मा सौंप दिया। उन्होंने गांधी दर्शन के साथ तमाम प्रयोग किए। इस दौरान उनकी आध्यात्मिक साधना भी चलती रही।
देश की आजादी के आंदोलन में विनोबा कई बार जेल गए। 1940 में महात्मा गांधी ने उन्हें पहला वैयक्तिक सत्याग्रही घोषित किया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने धूलिया जेल में गीता पर मराठी में लिखी पुस्तक 'गीताई' को अंतिम रूप दिया। इसी प्रकार विभिन्न जेलों में उन्होंने अपनी कई पुस्तकों की रचना की जिनमें 'स्वराज्य शास्त्र', 'स्थितप्रज्ञ दर्शन' शामिल हैं। विनोबा स्वयं कई भाषाओं के न केवल ज्ञाता थे बल्कि वह लोगों को भी कई भारतीय भाषाएं सीखने के लिए प्रेरित करते थे।
विनोबा के नेतृत्व में तेलंगाना आंदोलन के दौरान क्षेत्र की एक हरिजन बस्ती में भूदान आंदोलन की नींव पड़ी। भूमिहीन मजदूरों की समस्या के हल के रूप में भूदान आंदोलन की लोकप्रियता पूरे देश में जल्द ही फैलने लगी। इस आंदोलन के तहत उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, तमिलनाडु, केरल आदि राज्यों में कई भूमि स्वामियों ने अपनी भूमि दान की। विनोबा के व्यक्तित्व का एक अन्य बड़ा पक्ष उनकी पदयात्राएं थी। उन्होंने लगातार 13 वर्ष पूरे भारत की पदयात्राएं की। विनोबा ने चंबल घाटी में दस्यु समस्याओं को दूर करने के लिए दस्यु उन्मूलन प्रयासों में भी सक्रियता से योगदान दिया।
विनोबा ने 25 दिसंबर 1974 से अगले एक वर्ष तक मौन व्रत रखा था। इसी दौरान देश में आपातकाल लगाया गया था। मौन रहते हुए विनोबा ने इसे 'अनुशासन पर्व' की संज्ञा दी थी। इसके कारण विनोबा राजनीतिक विवाद में आ गए। उनका निधन 15 नवंबर 1982 को हुआ। विनोबा को 1958 में प्रथम मैग्सायसाय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से 1983 में मरणोपरांत सम्मानित किया।
भारत माता के इस रत्न को सभी मैनपुरी वासीयों का शत शत नमन |
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