दीपक और मनोरमा का सेंट मेरी

मैनपुरी। यूँ तो मैनपुरी में एजुकेशन का हाल बुरा है.वाबजूद मैं शहर में कुछ ऐसे लोगों को जानता जानता हूँ जो इस दिशा मैं शानदार काम कर रहे हैं.इन लोगों की संख्या फिंगर टिप्स पर पर गिनने वाली ही है.दुर्भाग्य है की ये संख्या आधा दर्जन भी नही है.वाबजूद इसके मैनपुरी मैं दो लोग ऐसें जिनके हुनर और ज़ज्बा देख कर कह सकतें हैं की उम्मीद बरकरार है.यहाँ मैं जिक्र करूंगा-
दीपक दीपक दीपक दास और उनकी पत्नी मनोरमा दास का
सभी जानते हैं की सभ्यता का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है. इनका स्कूल भी मैनपुरी की एक मात्र नदी ईसन नदी के किनारे मोजूद है.जिसका रास्ता आश्रम रोड से होकर जाता है. इनके स्कूल का नाम सेंट मेरी है. स्कूल की लोकेशन को देख कर लगता है.जैसे ये स्कूल मैनपुरी में एक नई सभ्यता को जन्म देने में लगा हुया है.इस स्कूल को बने हुए महज कुछ बरस ही हुये हैं.जिले में इस स्कूल को बेहद सम्मान की नजर से देखा जाता है. इस स्कूल की प्रिंसिपल मनोरमा दास हैं.उनको देख कर कहा जा सकता है.वे एक शानदार महिला हैं.उनमें गजब का उत्साह है.स्कूल की देख रेख दीपक और मनोरमा दास मिलकर करतें हैं. ये दोनों ही लोग अपना जियादा से जियादा समय इस स्कूल को देते हैं.दोनों का आपस में बेहतरीन तालमेल है जो किसी मिसाल से कम नही है. यहाँ पड़ने वाले बच्चों को देख कर लगता है इस स्कूल की तालीम वाकई बेहतरीन है.नेतिकगुन और शिष्टाचार यहाँ पड़ने वाले बच्चों के चेहरे पर साफ़ देखा जा सकता है. इसका एक कारण ये भी है की दीपक और मनोरमा दास ख़ुद भी एक नेक और ज़हीन इन्सान हैं.इसीका नतीजा हैं की यहाँ पड़ने वाले बच्चों का मोराल हाई है.इंग्लिश मीडियम के स्कूल मैं मैंने एक साथ इतनी खूबियाँ कम ही देखीं हैं.यहाँ होने वाले आयोजनों मैं एक खास बात ये भी है की इनके हर आयोजन मैं दीपक दास की माँ गेस्ट के रूप मैं मोजूद नजर आती हैं.जो यहाँ पड़ रहे बच्चों के लिए ज्वाइंट फेमली का एक असरदार उधारन कह सकते हैं. कुल मिलाकर सेंटमेरी स्कूल संत और दया के सिदान्त को लेकर मैनपुरी की नई पोध को तेयार कर रही है जो आगे चल कर मैनपुरी का नाम रोशन करेगी.और इसके लिए दीपक दास और मनोरमा दास को मैनपुरी हमेशा याद रखेगी।
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