कोई दम का मेहमान हूँ अहले महफिल
चराग-ऐ -सेहर हूँ बुझना चाहता हूँ
मेरी हवा में रहेगी ख्याल की बिजली
ये मुस्त-ऐ खाक है फानी.रहे न रहे।
मैनपुरी। कहते है की ये शेर भगत सिंह ने फंसी पर लटकने से कुछ घंटे पहले लिखा था.भगत सिंह जिन्हें हम शहीदे आज़म के नाम से भी जानते है २३ मार्च को इसी महान सख्स का बलिदान दिवस है.इसी दिन यानी २३ मार्च १९३१ की शाम ७ बज कर ३३ मिनट पर भगत सिंह और उनको दो अन्य साथी सुखदेव और राजगुरु को फंसी दी गई थी.भगत को २३ साल की उम्र मैं फंसी की सज़ा हुयी थी.भगत सिंह अपनी उम्र से बहुत आगे थे.इस उम्र मैं उन्हें साहित्य समाज और सिस्टम की वाखूबी समझ थी.इसका अंदाजा आप उनके खतों को पड़ कर भी लगा सकते है.भगत सिंह सही मायने मैं एक युवा थे जो उमंग.उर्जा और उत्साहा से भरपूर थे. उनके वारे मैं कई जानकर मानते हैं की वे कम्निस्ट थे .वे इसके उधारन भी पेश कर देते हैं.वाबजूद भगत सिंह मेरी नजर मैं एक युवा थे इससे ज्यादा कुछ नही.क्या ये कम नही है की युवा होना भी एक विचारधारा है? भगत सिंह के प्रति मेरी आस्था इस लिए भी ज्यादा है जिस उम्र मैं आज का युवा बी ऐ की पढाई पुरी करता है उस उम्र मैं भगत सिंह आनेवाले हिन्दुस्तान की तस्वीर बना रहे थे.उस ज़माने की बात करें तो संचार के साधन आज की तरेह इतने विकसित नही थे वाबजूद इसके पुरी दुनिया इस युवा के होसले और हीम्मत की कायल थी.भगत का विजन बेहद साफ था जो हर युवा का होना चाहिए.उसमे कहीं भटकाव नही दीखता. उनमेंसिस्टम को समझने की गज़ब की काबलियत थी.वे बहादुर नोजावन थे. साथ ही वे मुख्तलिफ प्रतिभा के धनी युवा थे.लेखन.साहित्य.भाषा.इकोनोमिक्स.समाज वे हर फिल्ड के मास्टर थे.आत्मविश्वाश उनमें कूट कूट कर भरा था।
उसे यह फ़िक्र है हरदम तर्जे जफा क्या है
हमें यह शोक है.देखें सितम की इन्तहां क्या है
दहर से क्यूँ खफा रहें
चर्ख से क्यूँ गिला करें
सारा जहाँ अदू सही.आओ मुकाबला करें।
भगत सिंह नास्तिक थे.फांसी के समय और शहीदों की तरह भगत ने अपनी छाती पर गीता या कुरान नही रखी.इसमें कोई शक नही की भगत सिंह का पुरा जीवन बेहद करिश्माई था,जिसकी चमक से हिंदुस्तान का स्वतंत्रता आन्दोलन आज भी रोशन है.
क्या खूब लिखा है जोनी तुमने मज़ा आ गया...भगत सिंह की स्मृति में बहुत ही बढ़िया लेख.
ReplyDeleteभगत सिंह नयी पीढी के आदर्श होने चाहिए थे मगर राजनीति ने उन्हें कम्युनिस्ट जैसी विचारधारा में बांध दिया और इसका परिणाम यह हुआ कि जिस सम्मान के वे हकदार थे उतना उन्हें नहीं मिला. अंग्रेजो के शासन काल में अपने साथी समाजवादियों के साथ उन्होंने जो लडाई लड़ी वो ऐसे नहीं भूली जा सकती.तुमने सही लिखा है कि वे मात्र वीर योद्धा ही नहीं थे एक स्कालर भी थे जिनकी पकड़ अंतर्राष्ट्रीय मामलों से लेकर देसी आर्थिक समाजवाद तक थी.......अच्छा लेख लिखने पर दिली बधाई. शहीद भगत सिंह के साथ .............जय हिंद