इस बार पानी न बरसने से न तो अषाण का पता चला और न सावन का कब कौन सा महीना कहां होकर गुजर रहा है। यह भी पता नहीं चल पा रहा है। सावन माह का तीसरा हफ्ता चालू है कहीं पर भी न तो किसी वृक्ष पर झूले पड़े दिखाई दे रहे हैं और न ही सावन के बोल मल्हारें सुनाई दे रही हैं। चारों और सूखे से त्राहि-त्राहि हैं लोग पानी न बरसने से बैचेन दुकानदार कस्बों में, किसान गांवों में अभी भी पानी बरसने की दुआएं मांग रहे हैं। लोक गीतों में इस समय मल्हार की धूम रहती थी वह भी खामोश है। बादल तो रोजाना हो रहे हें गर्मी भी उमस दार और विकट की पड़ रही है शरीर पसीने से तर बतर है पर पानी नहीं बरसता |
और तो और कभी लबालब भरी रहेने वाली इसर नदी भी आज कल सुखी हुयी है |
एसे में दिल येही कहेता है कि
" गरज बरस प्यासी धरती पर फ़िर पानी दे मौला ,
चिडियों को दाने ,बच्चो को गुड़धानी दे मौला ||"
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