मैनपुरी का बेपर्दा पत्रकार ''खुशीराम यादव''
मैनपुरी मैं यूँ तो कई पत्रकार हैं...लेकिन पुराने पत्रकारों में मुझे खुशीराम यादव बेहद पसंद हैं.हालाकिं उनका करियर राजनीति से शुरू हुआ था.लेकिन बदलती राजनीति में अपने आप को फिट महसूस ना कर पाने के चलते बाद में वे पत्रकारिता में दाखिल हो गए.७० और ८० के दशक में वे राजनीति में सक्रिय रहे.जमाना संजय गाँधी का था.वे यूथ कांग्रेस के जिला प्रसीडेंट थे.वक्त ने करवट ली तो राजनीति को अलविदा कह दिया.९० के दौर में मैनपुरी में साथी अनिल मिश्रा के साथ एक नई और उर्जा से भरपूर पत्रकारिता की शुरुआत की.वकालत भी जारी रखी. अल्ह्ह्ड जवानी में दोनों युवा पत्रकारों ने बदलती और प्रोग्रेशिव पत्रकारिता का स्वाद मैनपुरी की जनता को पहली बार चखाया. खुशीराम ने आपनी खास लेखन शैली से जल्द ही मैनपुरी की जनता को ये बता दिया की श्रमजीवी पत्रकारिता और पीत पत्रकारिता से भी आगे कोई पत्रकारिता है.मैनपुरी में खबरों को ''उल्टा पिरामिड शैली'' में लिखने की शुरुआत खुशीराम ने की थी. खुशीराम यादव की लेखन शैली बेहद मोलिक है.वे हर विषय पर बेखोफ लिखने का दम रखते हैं....ये बात अलग है कि उनके लिखने से कई बार लोगों का दम निकलते- निकलते रहा है. उनकी लेखनी खुदगर्जी और हिम्मत से भरपूर है.एक लेख में उन्होंने लिखा जिसका उनमान था''काश नेताओं के घर देश कि सीमाओं पर होते'' ये शीर्षक मुझे पत्रकारिता की नजर से कम्प्लीट खबर लगती है.इस शीर्षक को पढ़ लेने भर से कोई भी पाठक खबर का संदेश समझ सकता है.
खुशीराम 60 बसंत पार कर चुके है.बावजूद दिमाग आज भी युवा है.वे जितने लोकप्रिय बुजुर्गों में उतने ही लोकप्रिय युवाओं में हैं.सच तो ये है कि वे एक जिंदादिल इंसान है.वे किसी को भी हँसाने का दम रखते हैं.अपने दुःख भले ही वो किसी साथ शेयर ना करते हों.... लेकिन दूसरो के दुःख में वे किसी हनुमान से कम नजर नही आते.ये उनकी दरियादिली है.मोज लेने और देने में उनका कोई मुकाबला नही है.खुश होने का वे कोई मोका हाथ से नही जाने देते हैं. जिन्दगी को शानदार ढंग से जीना कोई उनसे सीखे.गोर करने लायक बात ये है कि पत्रकारिता में दो दशक गुजार चुके खुशीराम आज भी विवादित नही है. वे जितने हसमुख है उतने ही लेखन में गंभीर.लोग उनकी खबर से ज्यादा उनके शीर्षक का इंतज़ार करते हैं.जिले में शीर्षक लेखन में खुशीराम मेरी नजर में सर्वश्रेष्ट हैं.अपने ज़माने की लोकप्रिय पत्रिका ''माया'' में उनका कोलम बेपर्दा बेहद लोकप्रिय रहा.
खुशीराम की सबसे बड़ी खासियात उनकी सादगी है.वे बेहद सरल और सहज हैं.जिले में तेनात कई कलक्टर और आइपीएस अफसर आज भी खुशीराम यादव को याद करते हैं. अधिकारिओं और नेताओं की बैठकें खुशीराम की मोजूदगी से ही गुलज़ार होती थी.उनका किसी भी विषय पर अंदाजे बयाँ सबसे निराला रहता है.आपनी खास शैली के चलते वे गंभीर से गंभीर बात भी बड़े ही रोचक ढंग से कह देते हैं.खुशीराम इस उम्र में भी कुछ नया करने का होसला रखते है.इसके लिए वे प्रयास भी करते हैं.उनके नजदीकी उन्हें टोनिक की तरह साथ रखते है.सच हैं..... बिना खुशी और राम के भी भला कोई जीना है.
हृदेश सिंह
Dear Hridesh
ReplyDeleteI see since last 2 Yr. your presentation is regulary going on sharp n sharp and sharp. Sometimes if i get time to go through your blog i finds allways a new subject and i usually tries to leave my comment on the topic. But due to my busy schedule i hardly did it. No today when i saw an article on Khushiram jee i really found it appreciable and i extend my good wishes to keep it up. In society everyone is ready to be a part of criticizers but hardly there are a very few peoples are able to appreciate to positive qualities and attitute of peoples. It is said that if someone is human being then he must have some errors that means is not that man is a complete representation of the mistakes and error.
Whatever you have written about Khushiram Jee is really a good article he deserves for it. Since I came to Mainpuri I have seen few peoples like Khushiram. You can see a beautiful smile on his face and a heart with full of courrage to meet even those challenge in which a youth may hesitate.
I have a experience to share here. Once I meet him for the first time in a programme. I saw his way of delivering of speect which was really inspirational and full of zig. When the programme was over i meet him and told that he is really a very nice person and i am influenced with him. On depart i just tried to pay my regard to him as usual the way in indian tradition by bowing n touching his feets. He said Mr. RajPal Singh I am not too old to respect me in this way. It's better to shake hand and then he shaked hand with warmness. It impressed me.
Now even i Know he have been enmashed in a lot of diseases but still his face is glowing with confidence and usual smile.
I wish god to keep it always.
Rajpal singh Chauhan
Executive Director
(Chanakya-Acl, Mainpuri)