उत्तर प्रदेश का वीर...कर्मवीर
वरिष्ठ आई पी एस अफसर कर्मवीर सिंह को यूपी पुलिस का मुखिया बनाया जाना एक सराहनीय कदम है| कर्मवीर का मैनपुरी से नाता पुराना

नए अफसर के लिए ये टास्क किसी चुनौती से कम नही था| लेकिन ये चुनौती इस सरदार ने सम्भाली, और अंत में उसे अंजाम तक ले गए| बाद में कर्मवीर प्रदेश में डाकू उन्मूलन के लिए पहचाने जाने लगे| डाकू उनके नाम से थर्राने लगे थे| कर्मवीर मुठभेड़ में ख़ुद डाकुओं से मोर्चा लेते थे |
सीनियर पत्रकार खुशी राम बताते हैं, ''कर्मवीर का जोश देखने लायक होता था....वे बेहद सख्त अफसर थे| गुरु गोविन्द सिंह की तरह वे भी चिडिया से बाज़ लड़ाने का दम रखते थे| और उन्होंने ऐसा किया भी.''
छबिराम के गिरोह में कुल ७ या १० लोग थे| घोडों पर उनकी सवारी थी| जब उनका गिरोह सड़कों पर बेखोफ निकलता था तो पुलिस के जावन उसे सलाम करते हुए रास्ता देते थे| महिलाओं की छबिराम इज्ज़त करता था| उनके मायके से लाये गहने छबिराम ने कभी नही लुटे| लड़किओं की शादी में छबिराम खूब खर्च करता था...इधर 'नेता जी' लोकप्रियता बड़ती ही जा रही थी| डाका डालने का ग्राफ भी बड रहा था| ऐसे में अब कर्मवीर के लिए छबिराम का पकड़ा जाना जरुरी हो गया था| इधर कुछ नेता अपने स्वार्थ के चलते छबिराम का आत्मसमर्पण नही होने देना चाह रहे थे|
इन सब दिक्कतों के बाद भी कर्मवीर ने हिम्मत नही हारी| वीपी सिंह की ओर से दी गयी डेड लाइन खत्म हो चुकी थी| बावजूद इसके कर्मवीर ने एक दिन की मोहलत सरकार से और मांगी.मोहलत मिलने के दिन ही कर्मवीर ने छबिराम का सफाया करने की ठान ली| सटीक मुखबिरी और रणनीति से पुलिस ने ओंछा के पास जंगलों में मुठभेड़ में मार गिराया| बाद में डाकू छाबिराम की लाश को क्रिश्चयन मैदान में रखा गया| किसी डाकू कि लाश को पहली बार जनता के लिए सार्वजनिक रूप से दिखाया गया था| पूरा मैदान कर्मवीर सिंह के नारों से गूंज रहा था| लोग उनको हाथों में उठा रहे थे| ये किसी भी अफसर के लिए एक सुनेहरा पल कह सकते हैं| ये पल तोफीक इश्वर ने उन्हें दी थी| ये इज्ज़त शायद ही किसी पुलिस अफसर को यूपी में मिली हो|
इस बहादुर पुलिस अफसर के आने से यूपी पुलिस का चेहरा बदलेगा ऐसी उम्मीद की जा सकती है| क्यों की कर्मबीर ने हमेशा चिडिया से बाज़ लड़ाए हैं.....शुभकामनाएं|
- हृदेशसिंह
jaan ke khushi huee, i've heared about Chhaviram from my father,
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